आखिर क्यों नागा साधु पहले ‘अमृत स्नान’ में स्नान क्यों करते हैं?

मकर संक्रांति के मौके पर आज महाकुंभ 2025 के पहले अमृत स्नान के दौरान लाखों श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में पवित्र स्नान करने के लिए उमड़ पड़े। इस अवसर पर सबसे पहले 13 अखाड़ों के साधुओं ने संगम में डुबकी लगाई, उसके बाद आम लोगों ने डुबकी लगाई। अमृत स्नान, जिसमें नागा साधुओं को सबसे पहले स्नान करने का मौका दिया जाता है। इनको महाकुंभ मेले का मुख्य आकर्षण माना जाता है। महाकुंभ के पहले शाही स्नान के लिए नागा साधु ने पहले स्नान किया। दरअसल, 13 अखाड़ों को तीन समूहों में विभाजित किया गया है, वो इस प्रकार है- उदासीन, बैरागी (वैष्णव), और संन्यासी (शैव)। वैरागी अखाड़े निर्मोही, दिगंबर अनी और निर्वाणी अनी हैं; दो उदासीन अखाड़े (नया और बड़ा); और निर्मला अखाड़ा शैव अखाड़े हैं- महानिर्वाणी, अटल, निरंजनी, आनंद, भैरव, आह्वान और अग्नि।

महाकुंभ में सबसे पहले नागा साधु डुबकी क्यों लगाते हैं

न्यूज 18 के मुताबिक, लगभग आठवीं शताब्दी से ही विभिन्न अखाड़ों के साधु प्रयागराज में अमृत स्नान करने के लिए एकत्रित होते रहे हैं। अमृत स्नान आदेश, जो कि संघर्ष का स्त्रोत बन गया है। कुंभ के महीने भर चलने पर समारोहों का आयोजन नौवीं और अठारहवी शताब्दी के बीच अखाड़ों के द्वारा आयोजन किया गया है। इन अखाड़ों का अभी भी दबदबा है, अब अमृत स्नान का आदेश पर औपचारिकता मिल चुकी है।

धार्मिक माना मान्यता के अनुसार, पवित्र स्नान करने वाले पहले लोग नागा साधु थे, क्योंकि यह भगवान शिव के शिष्य माने जाते है क्योंकि ये लोग उनके प्रति गहरी तपस्या और भक्ति रखते हैं। यह प्रथा तब से चली आ रही है, जो नागा साधुओं की गहन आध्यात्मिक शक्ति और धार्मिक महत्व को दर्शाती है। जिन्हें अमृत स्नान का पहला विशेषाधिकार दिया जाता है।

 आखिर किन जगहों पर अमृत की बूंदे गिरी थी

धार्मिक परंपराओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश की चार बूंदें चार अलग-अलग स्थानों (प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार और नासिक) पर गिरी थीं, जब देवता और दानव अमृत कलश की रक्षा के लिए लड़ रहे थे। अब इन स्थानों पर महाकुंभ मेले की स्थापना की जाती है।

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